Thursday, February 23, 2017

जो भी हो सो हो

जीत तय है ये पता हो तो जीतने पे क्या उतना ही खुश होता
गर पता हो कि हार तय है तो लड़ने में क्या वही जूनून होता
जाने अच्छा होता या बुरा, गर पता होता कि कब क्या होता

Saturday, December 29, 2012

क्यूँ लाज ना आई जब इक औरत की लाज को तूने खींचा था !
अरे  इक औरत ने ही दूध-लहू से तेरी नस-नस को सींचा था !!

तेरे आने की आहट से भी पहले, दिन-रात दिए उसने पहरे  !
लुटती है आज वही औरत और हम बन बैठे अंधे-गूंगे-बहरे !!

याद रहे ध्रितराष्ट्र,
इक दुह्शाशन की करनी का फल तेरे समस्त कुल ने पाया था !
औरत की रक्षा में,
तत्पर एक तिनके से भी लड़ने में रावण को पसीना आया था !!


Tuesday, August 14, 2012

रंग रंगीला परजा-तंतर

लिखी जा रही है शायद नयी महाभारत जानी!
तब अँधा था राजा अब एक गूंगा-बहरा प्राणी !!
और जनता का चीर हरेगी आज द्रौपदी रानी !!!


अंधेरों की नगरी का ये महा चौपट राजा !
मुफ्त की मोबाइल अब चौखट पे आजा !!
और एक बोतल पानी के 20 रुपे खाजा !!!


ये वक़्त नहीं है रोने का !
मौका है अब सब धोने का !!
पूरा न हो तो पौने का !!!

Thursday, July 5, 2012

एक हसीं ख्वाब !!!

एक हसीं ख्वाब थी ज़िन्दगी, जब, तनहा चलते तू मेरे साथ हो लिया ...
न ज़मीन देखी, न छत, न बिस्तर, एक ने कन्धा दिया, दूसरा सो लिया ...

सिर एक का होता कंधे पर, और उस सिर पर होता दूसरे का हाथ ...
ए खुदा सुबह न होने देना, जी लेने दे ज़मीन पे ज़न्नत की ये रात...

वो गलियों में घूमना, फंसा उँगलियों में उंगलियाँ...
कितने आवारा हैं ये, शायद यही सोचती थी दुनिया...

लगाके सीने से तेरे हाथों को वो घंटों की खामोशी ...
वो मेरी छोटी सी हिम्मत, तेरी बड़ी बड़ी शाबाशी ...

अपना डर तू मुझको दे दे, और दे दे तू मुझको ये हक ...
करता रहूँ तेरे सपने सच, चाहे जगना पड़े मरने तक ...


Friday, June 3, 2011

अपने फरिश्तों से मेरे यार की सिफारिश कर दे ...

उसके होठों की वो मासूम हंसी वापिस कर दे ...
ए खुदा! पूरी ये मेरी आखिरी ख्वाइश कर दे ...

उसके नसीब से हर दर्द और ग़म को तू दे मिटा ...
उसकी आंसुओं को मेरी आँखों का वारिस कर दे ...

अता कर दे उसे मेरे हिस्से की ये सारी खुशियाँ  ...
अपने फरिश्तों से मेरे यार की सिफारिश कर दे ...

उसकी खुशियों में शामिल मैं ना भी हूँ तो ग़म नहीं ...
उसे भी मेरी याद ना रहे, ऐसी कोई साजिश कर दे ...

अपने फरिश्तों से मेरे यार की सिफारिश कर दे ...
उसके होठों की वो मासूम हंसी वापिस कर दे ...
ए खुदा! पूरी ये मेरी आखिरी ख्वाइश कर दे ...

Tuesday, April 26, 2011

आमीन !!!



दुनिया बनाने वाले, तू भी ये सोचने को हो जाए मजबूर ...
अब दुनिया भाड़ में जाए, मुझे बस हो दीदार-ए-महबूब ...

तन्हाई की तलब हो तुझे,  बंदगी भी रास ना आये ...
ए खुदा तेरा भी सिर फिरे,   तुझे भी इश्क हो जाए ...


:)

हुई खुशियों की Home Delivery !!!

क्यूँ अचानक सब कुछ इतना अच्छा लगता है ???
क्यूँ जागी आँखों का हर सपना सच्चा लगता है ???
तेरे ही ख्यालों से शायद, अब मेरा जहां सजता है !!!


क्यूँ खुद अपने गालों को सहलाते हैं मेरे हाथ ???
क्यूँ कहते हैं दोस्त - करने लगा हूँ खुद से बात ???
लगता है अब हर घडी रहने लगे हो  मेरे साथ !!!


क्यूँ रातें अब लम्बी और ये दिन छोटे लगते हैं ???
क्यूँ बिस्तर पे लेटे छत और दीवारों को तकते हैं ??? 
तेरे सपनों में आने को ही, शायद रातों को जगते हैं !!!

Monday, April 25, 2011

इक हसीन गुनाह !!!


जो मिला मुझे, इससे बढ़कर अब मांग नहीं सकता...
जो ख़ुशी, उसके मासूम इज़हारे मुहब्बत ने अता की... 
ये जहां क्या, तेरी ज़न्नत पाके भी भुला नहीं सकता...

मेरी तरफ से ऊपरवाले, अब बेफिक्र रहना...
अपना खुदा बदल चुका हूँ, मुझे माफ़ करना...

;) 

Thursday, March 31, 2011

टाइम पास!!!

इस मार्च, मैंने कुछ लिखा नहीं...
शायद इस महीने कुछ घटा नहीं!!!
कुछ घटा तो होगा, पर शायद दिखा नहीं...
या ऐसा घटा कि क्या लिखें, अब पता नहीं!!!  :)

Thursday, February 17, 2011

मंज़िलों से बेहतर, रास्ते !!!

हर आग़ाज़ का हो अंजाम, ज़रुरी तो नहीं...
हर रिश्ते का हो कोई नाम, ज़रूरी तो नहीं...

नामों के लेन-देन में अक्सर बदनामी भी आती है...
कुछ पाने की कोशिश हो तो नाकामी भी आती है...

तुझे पाने की क्यूँ ख्वाइश करूँ ? कि यहाँ सब खोना ही, तो पाना है...
मंजिल मेरे प्यार को मिले न मिले, रास्तों को ही दिल से सजाना है...

कि हर आगाज़े-मुहब्बत का, मिलना ही हो अंजाम, ज़रुरी तो नहीं...
जन्मों के प्यार को मिले, चंद दिनों के रिश्तों के नाम, ज़रूरी तो नहीं...


Tuesday, February 8, 2011

करें चरित्र पवित्र!!!


रखे तो कृष्ण ने भी कई वचन |
कुछ इस जनम, कुछ उस जनम ||
अहो मनुष्य-सौगंध का ये चरम |
बने भीष्म प्रतिज्ञा के विशेषण ||

जब जिसने किया प्रभु-सुमिरन |
कामना पूर्ण करते थे भगवन ||
कर दिया कवच-कुंडल अर्पण |
और दानवीर कहलाया कर्ण ||

देवों को चुनौतियाँ देने वाला |
प्राणों को दान समझने वाला ||
वो मनुष्य आज सो बैठा है |
अपना चरित्र खो बैठा है ||

जब भीष्म कर्ण से हो चरित्र |
तब घटती है घटना विचित्र ||
कर जोड़ खड़े होते हैं राघव |
वाह रे चरित्र, वाह रे मानव ||



Sunday, February 6, 2011

यादों की खेती...


ये दिल जो तनहा होता है, तेरे ही ख़याल आते हैं…
सो चुके यादों के सागर में फिर नए उबाल आते हैं…
आज कुछ ऐसा ही हुआ, सोचा कुछ पुराने पल फिर बिखेर दूं…
वक़्त ने जो सिल दिए हैं घाव, एक बार फिर उन्हें उधेड़ दूं…
क्यूंकि जिन नाखूनों के ये ज़ख्म हैं…
उन्ही हथेलियों की गोद में आज भी सोया करता हूँ…
कल के सपनों में ही, कल के बीज बोया करता हूँ…
तुझे तो खो चुका, तेरी यादों को खोने से बहुत डरता हूँ…
इसलिए वक़्त निकाल के, तनहा रह लिया करता हूँ…

शर्त


थी एक ही ख्वाइश जिंदगी में, कि खुशियाँ कभी तेरी कम न हो…
खुदा ने मंज़ूर तो कर ली ये गुजारिश मेरी…
एक शर्त खुदा ने भी रख्खा, कि उन खुशियों में शामिल हम न हो..
ज़िन्दगी तेरी ज़िन्दगी में शामिल कर चुका था मैं…
क्यूँ भटक कर उस खुदा के दर पे चला गया…
कब से तो तुझे अपना खुदा कर चुका था मैं...